हनुमानजी ने इस दिव्यांग भक्त को मौत के मुंह से बचाया

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Bajrangbali ka Chamatkar In Hindi

हनुमानजी ने इस दिव्यांग भक्त को मौत के मुंह से बचाया, आज 200 से ज़्यादा अवार्ड्स और मेडल्स जीते

मेरा नाम सुभाष गुप्ता है मेरी उम्र 31 साल है और में फिलहाल दिल्ली में रहता हूँ, पर जो अनुभव में आप सभी से साथ शेयर करना चाहता हूँ वो मेरे जन्मस्थान से जुडी हुई है जो पटना की है, Bajrangbali ka Chamatkar in Hindi

मुझे बचपन से ही बजरंगबली से लगाव है, ऐसा लगता है कि बजरंगबली से मेरा रिश्ता बहुत पुराना है, में 4 साल का था तब से उनकी पूजा करता और श्री हनुमान चालीसा भी पढता था,

में चल नहीं सकता इसलिए में एक छोटी सी श्री हनुमानजी की मूर्ति को अपने पास रखता था और नित्य पूजा करता था, मुझे रोते हुए नहीं देख सकते मेरे बजरंगबली इसलिए सपने में आकर कभी खेलते तो कभी गोद में बैठाकर फल खिलाते,

अपाहिज होने की वजह से मेरे कोई दोस्त नहीं थे जिसके कारण में उदास रहता था, मुझे ठीक से याद नहीं पर एक दिन मेरे बजरंगबली मेरे सपने में आये और बोले में हूँ न, में तुम्हारा दोस्त बनूँगा,

तबसे में उन्हें अपना दोस्त मानता हूँ, प्यार करता हूँ, जगड़ता हूँ, अपना बर्थडे भूल जाऊ पर उनका बर्थडे मनाता हूँ,

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man on wheelchair

ये बात 2002 की है में जब 14 साल का था तब बोर्ड के एग्जाम की तैयारी कर रहा था, दिन रात बस पढाई करता था, न खाने पीने का होश रहता, बस तैयारी में लगा रहता,

एक दिन में अपने स्टडी रूम वाले कमरे में था, उस दिन में पढ़ते पढ़ते सोफे पे सो गया, करीब 12 बजे रात को कुछ अजीब आवाज़ आई और में सोफे से गिर गया,

मैंने मेरी माँ और भाई को बुलाया, उन्होंने मुझे उठाकर बेड पे बैठा दिया और माँ साथ में सो गयी, कुछ दिनों बाद मुझे अचानक बुखार आ गया और खांसी भी, मैंने ध्यान नहीं दिया क्योंकि मेरे एग्जाम आने को थे,

बस पढता गया लेकिन ज्यादा बीमार होने की वजह से माँ बोली एक बार डॉक्टर को दिखा लो, मेरे साथ वाले घर में ही डॉक्टर का क्लिनिक था वो रेंट पे रहते थे वहां,

मैंने उन्हें दिखाया उन्होंने दवा दी लेकिन आराम नहीं मिला कुछ दिन बाद अचानक खून की उल्टियां होनी शुरू हो गयी, पास वाले डॉक्टर को समझ नहीं आया फिर पापा ने उनके एक दोस्त जोकि होम्योपैथी डॉक्टर है उन्हें बुलाया,

उन्होंने भी दवा दी फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा, 2 हफ्ते बाद उसी डॉक्टर ने जिसे मैंने पहले दिखाया था वो बोले कि एक बार इसका टी.बी का चेकउप कर लेते है,

जब रिपोर्ट्स आई तो टी.बी आया और वो 2nd स्टेज तक पहुंच गया था, में कुछ खा पी नहीं रहा था कुछ अलग खाने को दिल करता क्योंकि में कमजोर हो चुका था, तो जो मन करता वही खिलाया जाता या मंगवाया जाता,

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कुछ दिन बीत गए और मेरी हालत बहुत ख़राब हो गयी फिर से डॉक्टर को बुलाया गया, वो बोले की अब ये नहीं बच पायेगा, इसे गंगाजल पिलाये और गीता सुनाए, यह सुनकर मेरी माँ मुझे देख कर दूर जाकर रोने लगी,

मैंने माँ से कहा रोइये मत मुझे कुछ नहीं होगा, फिर मेरी आँखों के सामने अँधेरा हो गया और मैंने देखा कि एक आदमी काले भैंस पे बैठा है और एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में काली मोटी रस्सी जैसा कुछ था,

उसी समय मैंने मेरे बजरंगबली को याद किया और उनसे कहा कि जो आदमी भैंस पे है में उनके साथ नहीं जाऊँगा, मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ करना है,

मेरे पापा गए डॉक्टर के पास और उसी वक़्त डॉक्टर को लेने हमारे पडोसी भी आये जिन्हें में चाचा कहता था उनकी माँ उसी वक़्त अचानक सीरियस हो गयी जो पहले ठीक थी, पापा ने कहा कि पहले उनको देख लीजिये,

डॉक्टर उनके पास गए और कुछ देर बाद मेरे पास आये और बोले कि उनकी माँ अब नहीं रही और में तब तक थोड़ा नार्मल हो गया था और डॉक्टर दवाई देकर चले गए,

मुझमें इतनी शक्ति नहीं बची थी की में श्री हनुमान चालीसा पढ़ सकूँ बस मन में श्री हनुमानजी को याद करता रहता और एक विश्वास था कि बजरंगबली मेरे साथ है,

लेकिन में एक मंत्र का जाप जरूर करता था जोकि है, “मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।“

एक दिन मुझे सपना आया की कही एक श्री हनुमानजी का मंदिर है जहां नदी भी है और सिर्फ हवन की राख से श्री हनुमानजी की प्रतिमा बनी हुई है, मैंने उस सपने के बारे में मेरे भैया को बताया तो भैया ऐसी जगह खोजने लगे और वो जगह मिल भी गयी,

पता किया तो मालूम हुआ कि जो सपने में बताया गया वही हुआ था हवन की राख से श्री हनुमानजी की प्रतिमा का होना, फिर मेरे पापा और भैया मुझे वहां लेकर गए, वहाँ के पंडित जी बोले कि जिस घर में आप रहते है उस घर में बहुत सारी आत्माएं है,

अगर अपने लड़के को बचाना चाहते है तो आप उस घर को छोड़ दे और मुझे लेकर अतरौलिया चले जाये वहा एक हनुमानजी का मंदिर है,

पापा और भैया मुझे घर लेकर आ गए, पापा ने पता किया तो पता चला कि जहाँ हमारा घर है, वहाँ अंग्रेज़ों के ज़माने में फाँसी देते थे, अँगरेज़ लोगो ने करीब 1000 से भी ज़्यादा लोगो को फांसी दी थी,

फिर पंडित जी के कहे अनुसार हम अतरौलिया गए, तो वहाँ के पंडित जी बोले ये बच कैसे गया बहुत भयानक आत्मा का साया है इस पर, कुछ महीने वहां रहने के बाद थोड़ा आराम हुआ लेकिन बीमारी से राहत नहीं मिली,

फिर वहां से वापस आने के बाद सबसे पहले तो हमने अपना घर बदल दिया और एक डॉक्टर का पता चला जो टी.बी के स्पेशलिस्ट थे लेकिन वे रिटायर्ड हो गए थे, किसी का इलाज नहीं करते थे, पर मुझे उनके पास ले जाया गया और प्रभु की कृपा से उन्होंने मेरा इलाज शुरू किया,

मेरी माँ माता दुर्गा को बहुत मानती है उन्होंने दुर्गा पाठ किया और 21 शनिवार को शनिदेव के मंदिर में तेल छड़ाई और दिया जलाया करती, करीब 9 महीने बाद में ठीक हो गया,

आज भी मेरे बजरंगबलि मेरे साथ है और मेरी मदद करते है, आज में अर्टिस्ट आर्ट टीचर फेस इंडिया वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर हूँ और मुझे दिव्यांग रत्न अवार्ड भी मिला है और करीब 200 से अधिक मेडल्स और अवार्ड्स है मेरे पास,

ये सब श्री राम और मेरे बजरंगबलि और माँ दुर्गा का आशीर्वाद है, आप सभी से निवेदन है की भक्ति करो तो दिल से करो और विश्वास कीजिये सब अच्छा होगा, आज भी में हर रोज़ श्री हनुमान चालीसा पढता हूँ और हर वक़्त उनका ही नाम मेरी ज़बान पर रहता है,

आये चाहे जितनी भी मुश्किल तू न घभराना, देख के उसकी आँखों मैं ये कह जाना, मत टकरा तू मेरी हिम्मत से तू चूर चूर हो जायेगा, देख के तेरी हिम्मत को मुश्किल भी सर झुकाएगा.

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धन्यवाद 🙂

जयेश वाघेला

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