रक्षाबंधन से जुड़े 3 रहस्य जो शायद आप नहीं जानते होंगे

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Raksha Bandhan Festival in Hindi

क्यों मानते है रक्षाबंधन का त्यौहार? जानिए रक्षाबंधन से जुड़ी 3 रहस्य जो शायद आप नहीं जानते होंगे

रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है जिसे श्रावण मास की पूर्णिमा को पूरे भारत में धूम धाम से मनाया जाता है, हर भाई-बहन को इस त्यौहार का बेसब्री से इंतज़ार होता है जहां बहन अपने भाई को राखी बढाती है और भाई अपनी बहन को अच्छे अच्छे उपहार देते है, Raksha Bandhan Festival in Hindi

लेकिन क्या आपको पता है कि रक्षाबंधन का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? आज इस पोस्ट के माध्यम से आप रक्षाभंदन से जुडी 3 ऐसी बातें जानेंगे जो शायद आप नहीं जानते होंगे,

महाभारत से जुड़ा रहस्य

महाभारत की एक कथा में राखी का जिक्र हुआ है, इस कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण का शिशुपाल से युद्ध हुआ और श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया था, लेकिन श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग गयी थी,

जब द्रोपदी ने कान्हा की ऊँगली से खून निकलते देखा तो वो घबरा गयी और उन्होंने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और श्री कृष्ण की चोट वाली उंगली पर बांध दिया, जिससे खून का निकलना बंद हो गया, यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को घटित हुई थी, तो मान्यता के अनुसार इस घटना के बाद रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा,

श्री कृष्ण ने बाद में द्रोपदी के चीर-हरण के वक़्त जब कोई योद्धा द्रोपदी की लाज बचाने नहीं आया तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचायी और अपने भाई होने का धर्म निभाया था.

राजा बलि और माता लक्ष्मी से जुड़ा रहस्य

जब राजा बलि ने भगवान विष्णु से अपने रक्षक बनने की विनती की, तो भगवान विष्णु ने अपने भक्त के अनुरोध से राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प ले लिया और पातालपुरी में राजा बलि के राज्य में आठों पहर सशरीर उपस्थित रहकर राजा बलि और उसके पूरे पातालपुरी की रक्षा करने लगे,

इधर वैकुण्ठ लोक में माता लक्ष्मी चिंतित होने लगी, तब इस कठिन समय में नारद जी ने माता लक्ष्मी को एक युक्ति सुझाई, उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि एक रक्षा सूत्र लेकर वे राजा बलि के पास जाये और एक दुखियारी नारी बनकर राजा बलि को भाई बनाकर प्रभु को वापस मांग लीजिए ताकि प्रभु वैकुण्ठ लोक वापस पधारे,

माता लक्ष्मी राजा बलि के दरबार में उपस्थित हुई और राजा बलि को भाई बनाने के लिए आग्रह किया, राजा बलि ने उनका प्रस्ताव स्वीकार किया और माता लक्ष्मी ने उन्हें रक्षासूत्र बांध दिया, राजा बलि ने उनसे कहा की उनके इच्छा के अनुरूप वे कुछ मांग सकती है वे अपने भाई होने का कर्त्तव्य ज़रूर निभाएंगे,

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Rakhi bandhan Festival

माता लक्ष्मी ने राजा बलि से उनकी सबसे प्रिय वस्तु देने को कहा, राजा बलि ये सुनकर घबरा गए और कहा की मुझे सबसे प्रिय मेरे प्रभु है जो मेरे प्रहरी बनकर सशरीर मेरी और पूरे पातालपुरी की रक्षा कर रहे है, लेकिन उन्हें देने से पहले में अपने प्राण त्यागने ज्यादा उचित समझूंगा,

तब माता लक्ष्मी ने खुद का परिचय देते हुए कहा की में आपके इसी प्रहरी की धर्म पत्नी हूँ जिसे आपने बहन माना है, और बहन के सुख सौभाग्य और गृहस्थी की रक्षा करना एक भाई का फ़र्ज़ है, राजा बलि ने अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर बहन के सुख को अपना कर्त्तव्य माना और प्रभु को पातालपुरी से जाने की अनुमति दे दी, ताकि वे माता लक्ष्मी के साथ वैकुण्ठ लोक प्रस्थान कर सके,

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लेकिन राजा बलि ने माता लक्ष्मी से आग्रह किया की जब बहन और बहनोई उनके घर पधार ही गए है तो वे कुछ और समय वहाँ रहे और उन्हें सेवा का अवसर दे, माता लक्ष्मी ने उनका आग्रह मान लिया और श्रावण मास की पूर्णिमा से कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि धनतेरस तक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी वहाँ राजा बलि के साथ रहे,

धनतेरस के बाद जब प्रभु वैकुण्ठ लोक वापस लौटे तो लूरे लोक में दीप-पर्व मनाया गया तो ये भी एक कारण था भाई – बहन के इस पवित्र त्यौहार का.

इन्द्र और इन्द्राणी से जुड़ा एक रहस्य

भविष्य पुराण के अनुसार जब दानवों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध हो रहा था, तब देवताओं की सेना दानवों की सेना से पराजित हो रही थी, तब देवराज इंद्र की पत्नी देवताओ की हार से चिंतित होने लगी थी और इंद्रदेव की रक्षा के उपाय सोचने लगी,

काफी विचार करने के बाद इन्द्राणी ने तप करना शुरू किया और वरदान स्वरुप रक्षासूत्र प्राप्त किया, इन्द्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा को ही उस रक्षासुत्र को इन्द्रदेव के हाथ में बांध दिया, जिससे देवताओं की शक्ति बढ़ गयी और वे दानवों पर विजय पाने में सफल रहे, इसलिए उस दिन से रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा,

भविष्य पुराण के अनुसार सिर्फ भाई-बहन ही नहीं पति-पत्नी भी साथ मिलकर रक्षा बंधन का त्यौहार मना सकते है, आप जिस किसी की भी रक्षा और उन्नति की इच्छा रखते है उसे आप रक्षासुत्र यानि राखी बांध सकते है.

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धन्यवाद 🙂

जयेश वाघेला

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