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क्यों हनुमानजी के दर्शन मुझे नहीं होते? ईश्वर का साक्षात्कार कैसे करे

Ishwar ko kaise paye
क्यों हनुमानजी के दर्शन मुझे नहीं होते? ईश्वर का साक्षात्कार कैसे करे
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Ishwar ko kaise paye in Hindi

क्यों हनुमानजी के दर्शन मुझे नहीं होते?

दोस्तों कई लोग मुझसे अक्सर ये सवाल पूछते है की “मैं तो इतनी भक्ति करता हूँ, पूजा पाठ करता हूँ फिर भी श्री हनुमानजी की मुझपर कृपा क्यों नहीं होती, या मुझे दर्शन नहीं देते, मुझे ईश्वर का साक्षात्कार क्यों नहीं होता, ऐसा क्यों?” Ishwar ko kaise paye in Hindi

मेरा उन सभी लोगो से एक ही सवाल है कि क्या आपकी भक्ति सच्ची है? क्या आप निस्वार्थ भक्ति करते है? क्या आपके मन में कोई पाप है? क्या आप प्रभु भक्ति के नियमो का पालन करते है? क्या आप में वो तड़प है प्रभु को पाने की जो एक सच्चे भक्त में होनी चाहिए?

मुझे लगता है इन सारे सवालों के जवाब आपके पास ही है, लेकिन मैं फिर भी आप सभी के लिए एक पौराणिक कथा लाया हूँ जिससे आपके सारे सवालों के जवाब आपको मिल जायेंगे,

क्या ईश्वर को प्राप्त करना संभव है?

एक समय की बात है एक आश्रम में एक गुरु थे, उनके सत्संग और प्रवचन से प्रभावित होकर एक युवक ने उन्हें अपना गुरु बना लिया, युवक हर रोज़ गुरुजी के आश्रम जाता और अपने गुरुजी की सेवा करता,

गुरूजी जहा भी सत्संग और प्रवचन करने जाते उस युवक को अपने साथ ले जाते, इस प्रकार वो युवक गुरूजी के साथ हर सत्संग सभा और प्रवचन में उनके साथ ही जाता,

गुरूजी को कुछ दिनों से उस युवक के हाव भाव में बदलाव लगा और ऐसा लगा जैसे उस युवक का मन कहीं भटक रहा है, फिर एक दिन गुरूजी ने उस युवक को अपने पास बुलाकर एक सवाल पुछा, “क्या हुआ शिष्य कुछ दिनों से तुम बहुत परेशान लग रहे हो?”

युवक ने जवाब दिया, “मैं पूरी श्रद्धा से प्रभु की भक्ति करता हूँ, आपके सत्संग और प्रवचन में कही हर बात को ध्यान से सुनता हूँ, आपकी हर आज्ञा का पालन करता हूँ, दिल से आपकी सेवा भी करता हूँ, लेकिन मैं आपका शिष्य इसीलिए बना क्योंकि मैं जानना चाहता था कि क्या ईश्वर को प्राप्त करना संभव है?

परन्तु इतने दिनों से आपके साथ रहने के बाद भी मुझे उस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला, इसलिए मेरा मन थोड़ा अशांत है,

ये सुनकर गुरूजी मुस्कुराये, उन्होंने युवक से कहा की इतनी भी क्या जल्दी है, कुछ दिन और ईश्वर के चरणो में बिताओ, फिर मैं तुम्हे ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग बताऊंगा,

कुछ दिन बाद फिर से वो युवक अपने गुरूजी के पास अपना वो ही सवाल लेकर वापस आया, गुरूजी ने उस युवक से पुछा की, “क्या तुम सच में ईश्वर का साक्षात्कार करना चाहते हो? तो युवक ने उत्साहित होकर कहा, “हां गुरूजी” गुरूजी ने कहा, “तो चलो मेरे साथ मैं तुम्हे ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताता हूँ,

guru shishya

गुरूजी अपने शिष्य को लेकर एक तालाब की ओर चल पड़े, तालाब के किनारे पहुंचने के बाद गुरूजी ने अपने शिष्य को गर्दन से पकड़कर उसका मुँह तालाब में डूबा दिया,

गुरूजी के यु अचानक शिष्य को पानी में डुबोने से वो संभल नहीं पाया और पानी से बाहर आने के लिए जटपटाने लगा, फिर कुछ देर अपने शिष्य को पानी में डुबोने के बाद गुरूजी ने युवक को छोड़ दिया,

बाहर निकलने के बाद पहले तो युवक ने एक लम्बी सांस ली और गुरूजी की ओर देखकर पूछा की, “आप ये क्या कर रहे थे?” तब गुरूजी ने मुस्कुराकर उससे पुछा, “जब तुम पानी में थे तो क्या सोच रहे थे, तुम्हारे मन को उस समय सबसे ज़्यादा किस चीज़ की ज़रूरत थी?”

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 युवक ने जवाब दिया, “उस समय तो बस एक कतरा सांस लेने के लिए मैं मरा जा रहा था, ऐसा लग रहा था बस एक पल के लिए हवा में मैं सांस ले पाउ.”

तब गुरूजी ने अपने शिष्य को उसके ईश्वर के साक्षात्कार वाले सवाल का जवाब देते हुए कहा, “जब आत्मा को इतनी ही तड़प होती है ईश्वर से मिलने की, जितनी तुम्हे डूबते समय हवा की थी, तब आत्मा को परमात्मा के दिव्य दर्शन होते है, ईश्वर से मिलने के लिए सबसे पहले तो अपनी आत्मा में वो भूख, वो तड़प पैदा करो तभी ईश्वर का साक्षात्कार होता है और उन्हें प्राप्त किया जा सकता है,”

तो दोस्तों अब आपको मालूम पड़ ही गया होगा कि ईश्वर की भक्ति के साथ उन्हें प्राप्त करने के लिए आपकी आत्मा में परमात्मा को पाने की भूख होनी बहुत ज़रूरी है, तब जाकर ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और उनका साक्षात्कार होता है.


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धन्यवाद 🙂

जयेश वाघेला

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